दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश-Dakshin-bharat-prmukh-rajvansh

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश की 500 ईस्वी से 1200 ईस्वी

हम बात करेंगे दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश की 500 ईस्वी से 1200 ईस्वी के बीच के समय की |
इस समय मे दक्षिण भारत के अलग अलग क्षेत्रों मे कई प्रकार के राजवंशो का प्रभाव देखने को मिलता है |
5 वीं शताब्दी मे पल्लवो का 6 वी ओर 7 वी शताब्दी मे चालुक्यो का |

चालूक्य वंश की 3 शाखाओ

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• वातापी के चालुक्य
• वेंगी चालुक्य
• कल्याणी के चालुक्य
→ वातापी के चालुक्य or वेंगी चालूक्यो का प्रभाव 6वीं 7वीं शताब्दी मे देखने को मिलता है फिर वातापी के चालूक्यो की शक्तियाँ क्षीण हो गई थी और राष्ट्रकूट वंश की स्थापना हुई थी |
• 8 वीं शताब्दी के राष्ट्रकूट वंश के बारे मे करेंगे |
राष्ट्रकूट वंश का चालुक्य वंश की एक शाखा से उदय हुया तो दूसरी शाखा के कारण पतन हुआ था
• राष्ट्रकूट वंश के बाद कल्याणी के चालूक्यो की शक्तियों मे विकास हुआ और राष्ट्रकूट वंश का पतन हो गया |
• फिर कल्याणी के चालूक्यो का शासन स्थापित हुआ तो हम कल्याणी के चालूक्यो के बारे मे बात करेंगे | और सबसे अंत मे हम बात करेंगे 9वीं शताब्दी मे चोल वंश के उदय की |

पल्लव वंश (575 ई – 897ई): –

► पल्लव वंश की स्थापना उस समय हुई थी जब सातवाहक वंश का पतन हो रहा था |पल्लव वंशकृष्णा नदीके दक्षिण मे स्थित था, इस वंश ने अपनी राजधानी कांची को बनाया था | पल्लव की राजभाषासंस्कृतहुआ करती थी |
► पल्लवो का संथापकबप्पादेवथे |
पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक –सिंहविष्णुको माना जाता है |

🔴 सिंह विष्णु(575 – 600 ई) :

• सिंह विष्णुवैष्णव धर्मका अनुयायी था ,सिंह विष्णु के दरबार मेभारविनाम का लेखक रहा करता था जिसने ‘’किरतार्जूनियम’’ की रचना की थी |

• सिंह विष्णु के ही शासन काल मे मामल्लपुर मे ‘’वराह मंदिर’’ का निर्माण हुआ था |
• सिंहविष्णु एक महान प्रतापी शासक था जिसने चेर, चोल, पाण्ड्य वंश के राजाओ को युद्ध मे पराजित किया था |

🔴महेंद्रवर्मन-I(600 – 630 ई) :

• महेंद्रवर्मन एक महान कवि एवं संगीतज्ञ था |
• शुरुआत मे वह जैन धर्म का अनुयायी था बाद मे तमिल संत अप्पर के प्रभाव मे आकरशैव धर्मका अनुयायी बना |
• महेन्द्र्वर्मन के शासन काल मे चालुक्य नरेशपुलकेशिन IIने आक्रमण किया था ओर पल्लव शासक महेन्द्र्वर्मन को युद्ध मे पराजित किया, यही से ही पल्लवो ओर चालूक्यो के बीच युद्ध की शुरुआत हुवी थी |
• महेंद्रवर्मन ने ‘’मतविलास प्रहसन’’ की रचना की थी जो पल्लव काल की प्रमुख रचना है |

⏭ नरसिंहवर्मन- :

पूरे पल्लव वंश का सबसेशक्तिशालीशासकनरसिंहवर्मन- I था |
• इसने चालुक्य शासकपुलकेशिन-IIको युद्ध मे पराजित किया था | इसे पराजित कर नरसिंहवर्मन प्रथम ने ‘’वातापीकोण्ड’’ की उपाधि धारण की थी |

• इसके शासन काल मे चीनी यांत्रि हवेंगसान कांची मे प्रवेश किया था, साथ हीमहाबलीपुरममे रथ मंदिरो (एकाश्म मंदिर) का निर्माणनरसिंहवर्मन – Iने ही किया था रथ मंदिरो की संख्या – 7 है, इन्हे हीसप्तपेगौड़ाके नाम से जाना जाता है |

⏺ नरसिंहवर्मन– II(700-728 ई):

इसका शासनकालशांतिका शासनकाल माना जाता है और इसके शासन काल मेस्थापत्य कलाका भरपूर विकास देखने को मिलता है जैसे –

• मुक्तेश्वर मंदिर
• बैकुंड पेरुमाला मंदिर
• कैलाशनाथ मंदिर (राजसिद्धेश्वर मंदिर)
♦ इन्ही मंदिर के निर्माण से हीद्रवीण स्थापत्यकला की शुरुआत हुई थी |
♦ इस नरसिंहवर्मन द्वितीय, के दरबार मे संस्कृत के प्रसिद्ध लेखकदंडीरहा करते थे इन्होने ही ‘’देशकुमारचरित’’ की रचना की |
♦ इसके बाद नंदीवर्मन द्वितीय, नंदी वर्मन तृतीय राजा हुए और इस वंश का अंतिम प्रमुख शासकअपराजितवर्मन(879-897 ई) हुआ |
► बाद मे पल्लव साम्राज्य कोचोल शासकोने विजित कर अपने राज्य मे मिला लिया |

⏺ वातापी के चालुक्य:

जिन चालूक्यो ने वातापी को अपनी राजधानी बनाया था वो वातापी के चालुक्य कहलाए |

• इस वंश का संस्थापक –पुलकेशिन प्रथम(535-567 ई) था |

🔴 पुलकेशिन प्रथम–

पुलकेशिन प्रथम ने हीबादामीको अपनी राजधानी बनाया |
• इसके बाद किर्तिवर्मन का पुत्रपुलकेशिन द्वितीयअगला शासक बना |

➡ पुलकेशिन द्वितीय–

इस वंश का सबसे महान शासक हुआ, इसने पश्चिमी गंग वंश, कदंब वंश, और पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन को पराजित कर ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की थी |
→ पुलकेशिन द्वितीय के बारे मे जानकारी रविकीर्ति के द्वारा लिखित ‘’एहोल अभिलेख’’ से मिलती है |
► पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को पराजित किया इसका उल्लेख इसी अभिलेख मे मिलता है |

► पुलकेशिन द्वितीय ने वेंगी (आन्ध्रप्रदेश) को जीत कर अपने भाईविष्णुवर्द्धनको वहाँ का शासक नियुक्त किया इसी के साथ वेंगी के चालूक्यो की नीव रखी गई |
► इस पुलकेशिन द्वितीय ने अपने शासनकाल मे पल्लव वंश पर आक्रमण करा और पल्लव शासकमहेंद्रवर्मन प्रथमको युद्ध मे पराजित किया था |
► इसका बदला इसके पुत्र नरसिंहवर्मन प्रथम ने लिया पल्लववंश का महाप्रतापी शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने इसी पुलकेशिन द्वितीय को श्रीलंका के राजा के साथ मिलकर 642 ईस्वी मे पराजित कर उसकी राजधानी बादामी पर कब्जा कर लिया और विजय के बाद नरसिंहवर्मन प्रथम नेवातापिकोण्डकी उपाधि धारण की |
► इसके बादविक्रमादित्य प्रथमअगला शासक बना जिसने 654 ईस्वी मे इन पल्लवो से बदला लिया |
► इसके बाद विनयादित्य, विजयादित्य और विक्रमादित्य द्वितीय अगले शासक हुए इस वंश का अंतिम शासककीर्तिवर्मन द्वितीयथा जिसेदंतिदुर्गने पराजित किया औरराष्ट्रकूट वंशकी स्थापना की थी |

►वेंगी के चालुक्य (पूर्वी चालुक्य) :

► पुलकेशिन द्वितीय के भाईविष्णुवर्द्धनने इस वंश की नीव रखी थी |

► इसने अपनी राजधानी वेंगी को बनाया था इसलिए ये वेंगी के चालुक्य कहलाए |
► इसी विष्णुवर्द्धन की पत्नी आयना महादेवी नेविजयवाड़ा मे जैन मंदिरोका निर्माण करवाया था |
► पर इस वंश का सबसे महाप्रतापी शासकविजयादित्य तृतीयथा | इसने स्वयं को दक्षिणापथ का सबसे महानतम शासक घोषित किया |
► इसके बाद प्रमुख शासक हुए –
Note:प्रमुखपापनाथ मंदिर और विरूपाक्ष मंदिरका निर्माण कार्य भी चालूक्यो के शासन काल मे हुआ था |

►राष्ट्रकूटवंश:

राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दंतिदुर्ग (735-756 ई) ने वातापी के चालूक्यो के अंतिम शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित कर की थी |
• राष्ट्रकूटो ने अपनी राजधानीमान्यखेतको बनाया था |

• दंतिदुर्ग के बाद इस वंश का अगला शासककृष्ण प्रथमहुआ इसने अपने शासन काल मे एलोरा की ठोस चट्टानो को कटवा कर एलोरा केकैलाशनाथ मंदिरका निर्माण कराया था |
⇒ गोविंद द्वितीय – ध्रुव प्रथम – गोविंद तृतीय – अमोधवर्ष – कृष्ण तृतीय |
♦ध्रुव– ध्रुव को ‘’धारावर्ष’’ के नाम से जाना जाता है |
♦गोविंद तृतीय–गोविंद तृतीय भी एक महाप्रतापी शासक था इसने पल्लव पाण्ड्य, केरल, प्रतिहार और गंग शासको को पराजित किया | इसके बाद इसका पुत्र अमोधवर्ष इस वंश का अगला शासक हुआ |
• इसने कन्नड़ भाषा मेकविराजमार्गकी रचना की है |
• ध्यान दीजिएगा इसी अमोधवर्ष ने मान्यखेत को अपनी राजधानी बनाया था |
• इसके बाद इस वंश का अंतिम महानतम शासक कृष्ण तृतीय हुआ इसने रामेश्वरम मे विजय स्तंभ और  देवालय  की स्थापना की |
► इसी के दरबार मे एक कन्नड़ भाषाई कविपोन्न रहा करते थे और इन्होने ही ‘’शांतिपुराण’’ की रचना की |
Note:एलोरा एवं एलीफेंटा की गुफाओंका निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासन काल मे हुआ है, एलोरा मे34 शेलकृत गुफाएँहै |
• 1-12 तकबौद्धोकी गुफाएँ है
• 13-29 तक हिन्दुओ  की गुफाएँ है
• 30-34 तक  जेनो की गुफाएँ है |

🔍 कल्याणी के चालुक्य:

जिन चालूक्यो ने हैदराबाद स्थित कल्याण  को अपनी राजधानी बनाया वो कल्याणी के चालुक्य कहलाए |
• 10वीं शताब्दी के अंत मे इस वंश की स्थापनातेलप द्वितीयने की थी |

• इस वंश के प्रमुख शासक तेलप प्रथम, तेलप द्वितीय, सत्याश्रय, जयसिंह द्वितीय,विक्रमादित्य षष्ट, सोमेश्वर तृतीय और तेलप तृतीय हुए |
• इन सभी मे सबसे महाप्रतापी शासक विक्रमादित्य षष्ट था इसने कई विद्वानो, कवियों को अपने दरबार मे आश्रय दिया था |
• इसके शासन काल मेशिक्षा और साहित्यके क्षेत्र मे अच्छा खासा प्रसार देखने को मिलता है |
• इसके शासन काल मे प्रसिद्ध कविविज्ञानेश्वर और विल्हण रहा करते थे |
► विल्हण -विक्रमांक चरित्र
► विज्ञानेश्वर –मिताक्षरा(हिन्दू विधि ग्रंथ है)
► इस वंश का अंतिम शासक तेलप तृतीय हुआ और आगे चलकर कल्याणी पर यादवों के अधिकार के साथ चालुक्य वंश का पतन हो गया |
►चोल वंश(850-1279 ई) :तीसरी शताब्दी मे चोल वंश के पतन के बाद 9वीं शताब्दी के आस-पास चोल साम्राज्य का फिर से उदय हुआ |
• 9वीं शताब्दी मे चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की |
• इस वंश मे आदित्य प्रथम, परांतक प्रथम, राजराज प्रथम, राजाधिराज प्रथम, राजेन्द्र द्वितीय, वीर राजेन्द्र , कुलोत्तुंग प्रथम, द्वितीय, तृतीय राजेन्द्र तृतीय प्रमुख चोल राजा हुए |
► ध्यान रखिएगा राजेन्द्र तृतीय इस वंश का अंतिम शासक हुआ था |

►विजयालय :

इसी ने 9वीं शताब्दी के चोल साम्राज्य की स्थापना की इसने तंजौर को जीतकर इसे अपनी राजधानी बनाया था | इसके बाद आदित्य प्रथम का पुत्रपरांतक प्रथमचोल साम्राज्य का अगला शासक हुआ |

►परांतक प्रथम :

इसके शासन काल मेराष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने आक्रमण किया था |
► इस युद्ध मे परांतक प्रथम का पुत्र मारा गया और चोलो की बुरी तरह से हार हुई |
• इतिहास मे यह लड़ाई तक्कोलम के युद्ध के नाम से जानी जाती है |

►राजराज प्रथम :

इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था यह  शैव धर्मका अनुयायी था |इसी के शासन काल से चोल साम्राज्य की महानता का युग प्रारम्भ हुआ |
• इसी ने चेरो की नौ सेनाओ को युद्ध मे पराजित किया साथ ही चालुक्य, पाण्ड्य, मैसूर के गंग राजाओ को युद्ध मे पराजित किया |

• इसने अपने शासन काल मे भूमि माप पद्धति कदंब की शुरुआत की थी और तंजौर मे प्रसिद्ध वृहदेश्वर मंदिर(राज  राजेश्वर मंदिर) का निर्माण (1010 ईस्वी) मे कराया था |
• राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण कर इसके उत्तरी हिस्से पर विजय प्राप्त की थी (लंका – सिंहल) |
► इसके बाद राजेन्द्र प्रथम अगला शासक हुआ|
► चोल साम्राज्य मे सर्वाधिक प्रसार इसी के शासन काल मे देखने को मिलता है इसने  गंगेकोण्ड चोलपुरम को चोलो की नई राजधानी बनाई थी |
• इसके शासन काल मे चालुक्य शासक जयसिंह द्वितीय ने हमला किया था पर वह बुरी तरह हार गया यह युद्ध इतिहास मेमास्की के युद्धके नाम से जाना गया |
• राजेन्द्र एसा एकमात्र चोल शासक था जिसनेसम्पूर्ण श्रीलंका  परविजय प्राप्तकी थी  साथ ही इसने बंगाल के पाल शासको को पराजित करके गंगकोंड चोल की उपाधि धारण की थी |
• आगे चलकर चोल और वेंगी के चालूक्यो के बीच विवाह संबंध बने और धीरे-धीरे राजा कुलोत्तुंग के शासन काल मे वेंगी का क्षेत्र चोल साम्राज्य का अंग बन गया |
► vvi points:
चौल शासन मे राजा अपने शासनकाल मे उत्तराधिकारी पहले से घोषित कर देते थे और अधिकांश चौल कालीन मंदिर शिव को समर्पित है, जैसे राजराज प्रथम द्वारा निर्मित तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर शिव को समर्पित था |

500 AD to 1200 AD of the significant dynasties of South India.

We will talk about the significant dynasties of South India between 500 AD and 1200 AD.
At this time, the influence of many types of dynasties can be seen in different regions of South India.
Pallavi in the 5th century and Chalukyo in the 7th century
Three branches of the Chalukya dynasty
Dakshin-Bharat-prmukh-rajvansh

Chalukya of Vatapi
Vengi Chalukya
Kalyani K Chalukya
The influence of Vatapi Chalukya or Vengi Chalukyo is seen in 6th 7th century then Vatapi Chalukyo power was weakened, and the Rashtrakuta dynasty was established
About the 8th-century Rashtrakuta dynasty
The Rashtrakuta dynasty emerged from one branch of the Chalukya dynasty and fell due to the other department.
• After the Rashtrakuta dynasty, the powers of the Chalukyas of Kalyani developed, and the Rashtrakuta dynasty collapsed.
• Then the rule of Chalukyas of Kalyani was established then we will talk about Chalukyo of Kalyani. And finally, we will talk about the rise of the Chola dynasty in the 9th century

Pallava dynasty (575 AD – 897 AD): –

The Pallava dynasty was established at a time when the Satvahak dynasty was collapsing. The Pallava dynasty was located south of the river Krishna. This dynasty had its capital at Kanchi. The official language of the Pallavas was Sanskrit
► Pallavi ka santhapak
The real founder of the Pallava dynasty is considered to be Simhavishnu
🔴 Singh Vishnu (575 – 600 AD):

• Singh was a follower of Vishnuvaishnava religion; Singh was the author of Vishnu’s court Mebharvinam who composed “Kirtarjunium”.

• The “Varaha Temple” was built in Mamallapur during the reign of Singh Vishnu
• Singhvishnu was a great majestic ruler who defeated the kings of Chera, Chola, Pandya dynasty in battle

Mahendravarman-I (600 – 630 AD):

Mahendravarman was a great poet and musician.
• Initially, he was a follower of Jainism. Later, he became a follower of Akar Shaivism under Tamil saint Upper’s influence.
During the reign of Mahendravarman, the Chalukya king Pulkeshin II invaded and defeated the Pallava ruler Mahendravarman in battle; this was the beginning of the war between the Pallavas and the Chalukyas.
Mahendravarman composed “Matvilas Prahasan” which is a major work of the Pallava period.

Narasimhavarman-I:

The most powerful ruler of the entire Pallava dynasty was Kasanarsinhavarman-I.
It defeated the Chalukya ruler Pulakeshin-II in battle. Defeating this, Narasimhavarman I assumed the title of “Vatapikond.”

• During its reign, Chinese mechanic Havengsan entered Kanchi, along with the construction of the Rath Mandir (Ekashma Mandir) at Himahabalipuram by Narasimha Varman-I.
Narasimhavarman-II (700-728 AD):

Its reign is considered to be a peacetime reign, and its power witnessed the development of architectural art such as –

Mukteshwar Temple

• Backund Perumal Temple
• Kailashnath Temple (Rajsiddheshwar Temple)
The construction of these temples was the beginning of Hydravin architecture
In the court of this Narasimhavarman II, famous Sanskrit writers used to be the ones who composed “Deshkumarcharit”.
Nandivarman II, Nandi Varman III became the next king, and the last chief ruler of this dynasty was Aparajitvarman (879-897 AD)
► Later the Pallava kingdom was conquered by the Kochol rulers and merged into their domain.
Chalukyas of Vatapi:

The Chalukyas who made Vatapi their capital were called the Chalukyas of Vatapi

The founder of this dynasty was Pulakeshin I (535-567 AD)
🔴 Pulakeshin I –

Pulakeshin I made Hibadami his capital
• After this, Kirtivarman son Pulakeshin II became the next ruler

➡ Pulakeshin II –

The greatest ruler of this dynasty was Harshavardhana, the ruler of the Western Ganga dynasty, the Kadamba dynasty, and the Pushyabhuti dynasty, who assumed God’s title.’
Information about Pulakeshin II is found in the “Ahole Records” written by Ravikirti.
► It is mentioned in this inscription that Pulakeshin II defeated Harsh.

► Pulakeshin II conquered Vengi (Andhra Pradesh) and appointed his brother Vishnuvardhan as the ruler there. With this, the foundation of Vengi’s Chalukyo was laid.
► This Pulakeshin II invaded the Pallava dynasty during his reign and defeated the Pallava ruler Mahendravarman I in battle.
It was avenged by his son Narasimhavarman I. Narasimhavarman I, the Pallava dynasty’s majestic ruler, defeated Pulakeshin II and the king of Sri Lanka in 642 AD and captured his capital, Badami. After the victory, Narasimhavarman, I assumed the title of Nevatapikondaki.
After this, Vikramaditya became the first ruler who took revenge on these Pallavas in 654 AD.
► After this, Vinayaditya, Vijayaditya, and Vikramaditya II became the next rulers. The last ruler of this dynasty was Kirtivarman II, defeated by Dantidurg and established the Rashtrakuta dynasty.
Vengi K Chalukya (Eastern Chalukya):
Vishnuvardhana, the brother of Pulakeshin II, laid the foundation of this dynasty.

It made its capital Vengi; hence it was called Vengi’s Chalukya.
► It was Vishnuvardhana’s wife, Aina Mahadevi, who had a Jain temple built in Vijayawada.
► But the most majestic ruler of this dynasty was Vijayaditya III It declared itself the greatest ruler of Dakshinapath.
► After this, I am the chief ruler.

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